________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिक्खेवेणं, सेणं पल्ले एनाहिय बेआहिय तेआहिय, उक्कोसणं सत्तरत्त परूढाणं संसटे सन्निवित्ते भरते बालग्गे कोडीणं तेणायलग्गा नो अग्गी डहेजा,नो वाउहरेज्जा, नो कुहेजा, नो पलिविद्धंसेजा नो पूइत्ताए हब्वमागच्छेजा तओणं समए 2 एगमेगं बालग्गं अवहाय जाव इएणं कालेणं सेपल्ले खीणे नीरइए मिल्ले के निट्ठिते भवइ, से तं ववहारिए उहार पलिओवमे // (गाहा) एएसि पल्लाणाणं, एकात्रंशत्तम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्यमूल <Post अर्थात् सूक्ष्म पल्यापम का वर्णन आगे करेंगे. और जो व्यवहार पल्यापम है, यह यथादृष्टांत कोइ पाला [ धान की मपती करने का शेपला या कप] एक योजन का लम्बा चौडा गोल और एकही योजन का झंडा, उस की त्रिगुनी से कुछ अधिक परधी, उस पाले में एक दिन दो दिन के उत्कृष्ट सात दिन के जन्मे बच्चे के बालाग्र छेदन कर एकत्र करें ये क्रोष्डोंगम बालन कर उस पाले को प्रति पूर्ण ठोस 2 कर भरे, ऐसे ठोस के भरे की उन वालाग्रकों अग्नि जलासके नहीं, वायु उढासके नहीं. अन्दर सडने पारे नहीं (पोलार के अभाव से ) विनाश पावे नहीं. दुर्गधीपने को प्राप्त होवे नहीं. इस प्रकार ठसोठस भरकर फिर उन वालाग्र में से एकेक समय में एकेक वालाग्र निकाले यों निकालते 2 जितने काल में वह पाला खाली होवे, बालाग्र के रज रहित लेप रहित, होवे अर्थात् सब वालाग्र उस के निकला 828.3 प्रमाण का विषय 04 अर्थ 498 For Private and Personal Use Only