________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 47 अनु , बायमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - कोडाकोडिहवेज दसगुणिया // तंवव ववहारियस्स उद्दारसागरोवमस्स एगस्स भवे परिमाणं // 1 // 2 // एतेहि, चेवव वहारिया पलिओवन सागरोक्मेहिं किं पयोयणं एतेहिं ववहारिय पलि ओवमहिं सागरोवमैहिं पत्थि किंचिवि पउयणं केवलं पणवणा पणविनंति स तं ववहारिए उद्धार पलिओवमे // 28 // से किं तं सुहुमे उहार पलिओवमे ? सुहुमे उद्धार पलिओवमे से जहा णामए पल्ले सिया जोयणं आयामविक्खंभेणं जोयणं उव्वेहेणं, तंतिगुणसविसेसं परिक्खेवेणं सेणं पल्ले एगाहिया जाये एक भी बालान उस में रहे नहीं उतने काल के समुह को एक व्यवहार पल्योपम करना. और स उद्धार पल्योपम के काल को दस ऋोडाक्रोड गुना करे, उतने काल के समुहक उद्धार सागरोपम का प्रमाण होता है. // 27 // अहो भगवन् ! इस व्यवहार पल्योपम स से क्या #प्रयोजन है ? अहो शिष्य ! इस व्यवहार पल्योपम सागरोपम से कुछ भी प्रयोजन . यह भी काम में आता नहीं है, फक्त वस्तुतः भेद बताने के लिये ही यहां इस की रूपना की गई है.. व्यवहार उदार पल्योपप हुआ. // 28 // भहो भगवन् ! यूक्ष्म उदारापम किसे कहते हैं अहो शिष्य ! सूक्ष्म उद्धार पल्योपम भी यथा दृष्टांव पाला (या कुवा ).. जन का लम्बा चौडा और एक योजन का फंडा त्रिगुनी कुछ अधिक परपी वाला उस पाले से एक दिन के दो दिन के प्रकाशक-रानावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादबी. For Private and Personal Use Only