________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिाजी तं उबमिए? उवमिए दुविहे पण्णत्ते तंजहा-पलिओवमेय,सागगेवमय ॥से किं तं पलिओ मे? पालेओवने तिविहे पणत्ते तंजहा-उद्धार पलिओवमे अद्धा पलिओवमे खेत्त पलिओवमे // से किं तं उद्धार पलिआवमे?उद्धार गलिओवमे ! दुविहेपण्णत्ते तंजहा सुहुमेय,ववहारिण्य // तत्थणं जे से सुहुमे ते ठप्पे // तत्थणं जे से ववहारिए से जहा नामए पलेसिया जोयण आयामविक्खंभेणं,जोयणं उव्वेहेणं तंतिगुणं सविसेसं प्रमाण किसे कहते हैं ! अहो शिष्य ! ओपमिक प्रमाण के दो भेद कहे हैं तद्यथा-१पल्योपप और 2 सागरोपम // अहो भगवन् ! पल्योपम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! पल्योपम तीन प्रकार के कहे हैं. तद्यथा-१ उद्धार पल्योपम, 2 अद्धा पल्योपम और 3 क्षेत्र पल्योपम / / अहो भगवन् ! उद्धार पल्योपम किसे कहते है ? अहो शिष्य ! उद्धार पल्योपम दो प्रकार के कहे हैं, तद्यथा-१ सक्षम उद्धार पल्योपम और 2 व्यवहार पल्योपम * इस में जो सूक्ष्म पल्योपम है उसे यहां स्थिर रखना * यहां अनुद्वार सूत्र में प्रथम उत्सेध अंगुल का मान भरतैरावत क्षेत्र के मनुष्य के बालान से कल्पा है यह / योजन तो फक्त 24 दंडक के जीवों के शरीर की अवगाहना की मपती करने कल्पा है इस लिये इस योजन को यहां कूप के प्रमाण में ग्रहण नहीं करना परन्तु जो भगवती सूत्र के 6 शतक 7 उद्देशे में महाविदेह क्षेत्र के मनुष्य के बालन की एक लीख गिनी है उस योजन के मान से एक योजन का कुप जानना. यह योजन उक्त योजन से कुछ कम होता है. यही योजन उद्धारादि पल्यापम के मान में ग्रहण किया गया है. *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी For Private and Personal Use Only