________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल 888ods पुढवीकंडाणं, पातालाणं, भावणाणं, भवणपत्थडाणं, निरयाणं, निरयावलीणं, निरय / पत्थडाणं, कप्पाणं, विमाणाणं, विमाणवलीणं, बिमाण पत्थडाणं, टंकाण, कूडाणं, सेलाणं, सिहरीणं, पभाराणं, विजयाणं, वक्खारेणं, वासाणं, वासहराणं, वेइयाणं, दारागं, तोरणाणं, दीवाणं, समुदाणं,आयामविक्खंभोचत्तोवेहपरिक्खेवा मविजंति // से समासओ तिविहा पण्णत्ता तंजहा-सेढी अंगुले, पतरंगुले,घणंगुले, असंखेज्जाओ अर्थ 82 प्रमाण विषय g से छ अंगुल के दो पाव, बारा अंगुल की विहत्थी, दो विहत्थी का एक हाथ, दो हाथ की एक कुच्छी, दो कुच्छी का एक धनुष्य, 2000 धनुष्य का गाऊ (कोस)४ गाऊ का योजन. अहो भगवन् ! इस प्रमाण अंगुल से क्या प्रयोजन है ? अहो शिष्य ! इस प्रमाण अंगुल से रत्न प्रभा के 16 पृथ्वी का कांड, 4 पाताल कलश, 7 क्रोड 72 लाख भुवनपति के भुवन, भुवन के पाथडे, नरकावासे, देवताओं के विमान, विमान की पंक्ति, विमान का पाथडा, ढंक-पर्वतो का विभाग, गंगा आदि कुंड, चूल हेमवंतादि पर्वत, मेरु आदि पर्वत पर्वत की खाइ, महा विदेह क्षेत्र की विजय, बक्ष्कार पर्वतों, हेमवयादि वास क्षेत्र, पद्मवर वेदिकादि वेदीका, विजयादि द्वार, द्वारों पर के तोरण,जम्बू आदि द्वीप, लवणादि समुद्र, इत्यादि का लम्बा पना, चौडापना का प्रमाण किया जाता है. इस पयाण अंगल के भी तीन भेद कहे हैं. a8 388 For Private and Personal Use Only