________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिष्णिरयणीओ उत्तर बेउब्विया जहा सोहम्मे / / गेवेजगा देवेणं भंते! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा एगे भव धाराणिज सरीरो पण्णत्ता सेजहणणं अंगुलस्स असंखजाति भागं, उक्कोसेणं दो रयणिओ॥ अणुत्तरोववाइया देवाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे भव धारिणिज्जे सरीरे पण्णत्ते से जहण्णेणं अंगुलस्स असंखजति भागे उक्कोसेणं एमारयणी // 21 // से समासओ तिविहा पण्णत्ता तंजहा-सूईअंगुले, पतरंगुले, घणंगुले // एग अंगुलायया 21 // अनुवादक वाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी - * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसह अर्थ शरीर की जघन्य अंगल के असंख्यातः भाग उत्कृष्ट दो हाथ की. अनुत्तर विमानवासी देवता के भी एक भव धारणिय शरीर है उस की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्पत्ति काल आश्रिय और उत्कृष्ट एक हाथ की यो चौवीस दंडक के. जीवों की अवगाहना उत्सेध अंगुल से कहीं // 21 // उत्सेघ अंगुल के तीन प्रकार कहे हैं. तद्यथा-२ सूची अंगुल, 2 प्रतर अंगुल और ३यनांगुल इस में एक अंगुल प्रमाण क्षेत्र की एक प्रदेशिक श्रेणी सो सूची अंगुल, सूची अंगुल को सूची गुना करे वह प्रतर अंगूल और प्रतर अंगुल को सूची से गुना करे वह घनांमुल, अहो भगवन् ! इन सूची अंगुल प्रतर अंगुल और घनागुल में कौन २किस 2 से ज्यादा की तुल्य वरावर ज्वालाप्रसादजी . For Private and Personal Use Only