________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ 4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पानी + सती९ वही, पन्नमाण माणं किं पओयणं ? एतणं धन्नमाण पमाणेणं-- मुत्तोली, मुहब इड्डर, अलिंद, अयचारि, संसित्ताणं, धन्नमाणप्पमाणिवत्त लक्खणं भवति, से तं धन्नमाण पमाणे // 3 // से कि तं रसमाण पमाणे ?रसमाण प्पमाणे धन्नमाण प्पमाणाओ चउभागवि बड्डिए अभंतर सिहाजुत्ते रसमाण प्पमाणे विहिज्जति तंजहा-' चउसाट्टेया 4, 2 बचीससियं 8, 3 सोलसिया 16,4 अट्ठभाइया 32, चर गाडीपर रखने की कोठी. 4 अलिन्दगंधीपर धासो चिनेकी कोठी, 5 अपचारी कडा धान्य का कोठार सब धान्य भरने के बरतनादि तथा धान्य मापनेके भाजन में का परिज्ञान इस से होता है. यह धान्य मान प्रमान हवा // 3 // अहो भगवन् ! रसमान प्रमान किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! रसमान में प्रमान सो इस धान्यपान प्रमाण से चार भाग अधिक और आभ्यंन्तर शिखामुक्त क्यों कि धान्य के जेसी रसकी शिखा नहीं चरती है. इस लिये इसे रसमान काना. तद्यथा-एक माणीका चौसठवा भाग शरपल प्रयाण सो चोसठी.या, एकमाणी के बत्तीस विभाग आटपल प्रमाण सो बत्तीसीया, एक माणी का सोलवा भाग वह सोलसिया, एकमाणी का आटवाभ.ग अठभइया, एकमाणी का / For Private and Personal Use Only प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायनी घालाप्रसादनी