________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकत्रिंशत्तम्-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुथल गुण विधड्रिया कनसे। // 1 // से किं तं परमाणु? परमाणु दुविहे पण्णत्ते तंजहा-- महोप, ववहारिरय // तत्थणं जे से सुहुमे से टप्पे तत्थणं जे से ववहारिए सेणं अणतागं सहम परमाणु पोग्गलाणं समुदय समिति समागमेणं ववहारिए परमाणु पागले नि फजति, सेणं भंते ! असिधारंवा, खुरधारंवा उगाहेजा ? हंता उगाहे जा, तीसेणं तत्थ छिज जवा ? नो इणटे समढे, नो खलु तत्थ सत्थ कमति सेण भंते ! अगणिकायस्स मञ्झंमज्झेणं बीतीवएजा ? हंता वीतीवएज्जा, सेणं तत्थ उज्झेजा नो इणटे समढे, नो खलु तत्थ सत्थ कमति, सेणं भंते ! पक्खरवहस्स महामेहस्स मज्झं मझेणं बीतीवएज्जा ? हंता वीतिवएज्जा है इस से तो सूक्ष्म परमाण है उस का वर्णन तो यहां ही रहने देना. और जो व्यवहारिक परमाणु है। ऐसे अनंत सूक्ष्म परमाणु के समागम से एक व्यवहार परमाणु होता है. अहो भगवन् ! वर परमाणु पुद्गल तग्वार की धार से, उस्तरे की धार से भी छदित होता है क्या ? अहो गौतम ! यह अर्थ युक्त नीं अर्थात् उस के दो खण्ड नहीं होते हैं. उस पर किसी भी प्रकार का तीक्ष्ण शस्त्र विचिन मात्र भी असर नहीं कर सकता है. अहो भगवन! यह व्यवहार परमाण अग्नि काय के मध्य मध्य में होकर चला जाना हैं क्या? हां शिष्य ! चला जाता. अहो भगवन् ! वह परमाणु अग्नि काय में से, जाता हुवा तहां जलता हैं क्या? अहो शिष्य ! यह अर्थ समर्थ नहीं अर्थात् अग्नि उसे जला नहीं सकता है. अहो मगरन ! वह परमाण पुष्कगवर्तमहा मेघ के मध्य 2 में होकर चला जाता है क्या ? 488% 48 प्रमाण विषय 8 80 For Private and Personal Use Only