________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 38+ एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल प्पमाणेणं ॥१॥अणंत ववहारिअ परमाणु पोग्गलाणं समुदय समिति समागमेणं साएगा उसण्ह साहि माइका सह सहाव उट्टरेणाति वा, तसोणुति वा. रेहेरणुति वा, अट्ठ उसण्ह सण्हियाओ सा एगा सहसण्हिया, अट्ठ सहसाण्हयाउ सा एमा उड्डरेणु, अट्ठ उड्रेणुओ सा एग्ग तसरेणु अट्ठ तसरेणुउ सा एगा रहरेण अङ्क रहरणुओ देवकुरु उत्तरकुरुआणं मणुयाणं से एगेवालग्गे, अट्ठ देवकुरु उत्तरकरुणं मणुयाणं वालग्ग हरिवास रम्मगवासाणं मणुयाणं से एगे वालग्गे, अटु हरिवास रम्मग वासाणं मणुस्साणं बालग्ग हेमवंत हेरणवंताणं मणुस्साणं से एगेवालग्गे, अट्ठ सडत करने समर्थ नहीं होता है. उसे ही परमाणु पुद्गल केवली भगवान ने शास्त्र में उसेध अंगुल की प्रमाण की आदि में कहा है, ऐसे अनंत व्यवहारिक परमाणु पुहुल का समुदाय सभागम होने से एक शीत श्रेणि (शरदी) का पुल ोता हैं आठ शीत श्रेणिक पुद्गल के समागमसे एक नई रेणु (तरवले में देखावे सो) होती हैं, आठ उर्वरणु तिनी एक अम्ररेण [त्रसजीव चलने से उडेसो होती है. आठ प्रसरेण के सभागमसे एक स्थरणु ( रथचलने उडेसो) होती हैं आठ स्थाणु के * समागमजितना बड़ा एक उत्तरकुरु देव कुरु क्षेत्र के अनुप्पों का बाजार होता है. 27 आठ देव कुरु उतर कुरु के क्षेत्र के मनुष्य के बागान जितना जाडा एक हरी बास रम्मक वास क्षेत्र के मनुष्य का बालन होता है. आठ हरीवास रम्पकबाप्त मनुष्य कोश 48 +8+ नाम विषय For Private and Personal Use Only