________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पण्णत्ता तंजहा-भव धारणिजाय, उत्तर वेउवियाय तत्थर्ण आ सा भवधारणिया सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजति भागं, उक्कोसणं एकतीसं धइं. एगारयणाय, तत्थणं जा सा उत्तर वंउब्विया सा जहन्नगं जगलस्त संखेजति भागं, उक्कोसेणं वासविधणुयाइं. दो रयणीउय // एवं सव्वासि पुढ पुच्छा भाणियब्वा पंकप्पभाए भवधारणिज्जा जहम्मेणं अंगुलस्स असंखेजतिभाग, उक्कोसेणं वासाटुधणुइं, दोग्यणांउप. उत्तर वेउब्विया जहमेणं अंगुलरस संखेजहभागं उमोसेणं पणवीस धगुपय; धूमप्पभाए भवधारभिजा जहन्ने अंगुलस्म असंखजति मागं, उक्कोसणं पावीस धणुसयं, उत्तर वेउव्विया जहलेणं सखेजह भागं उक्कोसणं अट्टाहबाइ मोत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्य ऐसे ही प्रश्नात्तर आगे भी जानना. शर्करममा नरक की भवधारणिय शरीर की अपाय गुलके असंख्यात भाग. उत्कृष्ट प्रदरण धनुष्य अढाइहाथ की, उत्तर वैक्रय शरीर की अपन्य अंगुक के संख्यात वे भाग उत्कृष्ट ए तीस धनुष्य एक हाथ की, लुधमा पृथ्वी में भव धारणिय शरीर की जघन्य अंगुल के अख्यावचे भाग उत्कृष्ट सबी एकतीस धनुष्य की. उत्तर वैक्रय शरीर की जघन्य अंगुल संख्यात भाग उत्कृष्ट साही वोसठ धनुष्य की, पकममा भरक के नरी के भव धारषिप शरीर की अषम्य अंगुल के असंख्यातचे माग, उत्कृष्ट साडी बांसट पनुष्य की, उच्चर वैक्रय शरीर को अचन्य अंगुल के संख्यात For Private and Personal Use Only