________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 408 48 एकत्रिंशत्तम-अनुयोगदार मूत्र-चतुर्थ पूल. 480 भागं उक्कोसेगं तिण्णिगाउयाई, अपजतगाणं जहन्नेणंवि उक्कोसेणंवि अंगुलस्स असंखजति भागं पज्जत्तगाण जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजति भागं उक्कोसेणं तिण्णिगाउयाइ // चरिंदियाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखजतिभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई, अपज्जत्तगाणं जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अमुलस्स असंखज्जति भागं, पज्जत्तगाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजति भागं उक्कोसणं चत्तारि गाउयाइं // 18 // पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजति भागं, उक्कोसेणं जोयण सहस्सं, जलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं पुच्छा ? मोयमा ! एवं चेव, समुच्छिम जलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं पुच्छा ? पारा योनन की. तेन्द्रिय की जघन्य अंगुल के असंख्यातः भाग उत्कृष्ट तीन गाउ की, चौरिन्द्रिय की 4 भयन्य अंगुल के असंख्थातवे भाग उत्कृष्ट चार गाऊ की. इन तीनों विक्लेन्द्रिय के अपर्याप्त जघन्य उत्कृष्ट अंगुल की असंख्यावे भाग की अवगाहना जानना. और पर्याप्त की समुच्चय जैसे जानना. // 18 // Aसमुबय तिर्यंच पंचेन्द्रिय की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट हजार योजन की 0 इतनी ही समूचय जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की अवगाहना जानना. समूच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि की मी इतनी अवगाहना भानमा. अपर्यास समुच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनी की जघन्य [1 अर्थ प्रमाण का विषय 4882-486 For Private and Personal Use Only