________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir aamanand अनुवादक बालब्रह्मचारि मुनि श्री अमोलख ऋषिजी पजत्तगाणं अपज्जत्तगाणं भाणियव्यं 5 वणस्सइ काइयाणं भंते ! के महीलया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेनतिभागं उक्कोसेणं सतिरेगं जोयण सहस्साणं सुहुम वणस्सइ काइयाणं उहियाणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणं तिण्हंपि जहन्नणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं,उकोसणं वि अंगुलस्सअसंखेजति भागं वायर वणस्सइ काइयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखजति भागंउक्कोसणं सातिरेगं जोयण सहरसं॥१७॥ एवं बेइंदियाणं पुच्छा?गोयमा। जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभाग उक्कोसणंविवारसजोयणाइं,अपजत्तगाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखजतिभागं उक्कोसेणंवि अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, पजत्तगाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजति भागं उक्कोसेणं बारस जोयणाई // तेइंदियाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजतिशरार की अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट अंगल के असंख्यातचे भाग की. वनस्पति की जघन्य अंगुल के असंख्यातबे भाग उत्कृष्ट एक हजार योजन की, मूक्ष्म वनस्पाते की अपर्याप्त पर्याप्त की जघन्य उस्कृष्ट / अवगाहना अंगुल के असंख्यातवे भाग की, बादर वनस्पति की जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग उत्कृष्ट एक हजार योजन की // 17 // बेन्द्रिय की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट प्रकाशक राजावहादुर लामा मुखदेवसहायजी ज्वालापसादजी. For Private and Personal Use Only