________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 195 एकत्रिंशसम अनुयागद्वारसूत्र-चतुर्थ मूल पयोयणं ? एएणं आयंगुलेणं जेणं जया माणुस्सा हवंती, तेसिगं तया आयंगुलेणं अगह तलाग दहण बावी पुक्खरणी दीहिया गुजालिया, सर, सरसरतीयाओ, विलपतियाओ, उजाणं काणणं, बणवणसंडं वणरातीओ, सभा का थूभा, खाइया, फरिहाओ, पागार, अहलयं, चरिय, दार, गोपुर,पासाय, घर तोरण, लेण, आवणा, सिंघाडग, तिगचउक्क, चच्चर, चउपह,महाप्पह,पह,सगड, रह जाण जुग गिल्लि थिलि, सिविय संदमाणियाओ लोड़ी लोह कडाह कडिलय भंड मनोवगरण मादीणी अज कालियाइंच जायणाई मविति // से समासतो द्वार, प्रसाद, घर, तोरण, पर्वत की लेन, कान, त्रिपंथ. चौपंथ, बहत पंथ. महापंच, गाडी, रथ, मंत्री, , जुग, ऊंट की गिल्ली.हामी की अंबडी, शिविका, पालखी, लोहा. लोह की कडाइ, कडाव. मंडोपकरण इत्यादि का प्रमाण जिस काल में जो मनुष्य हो उन के अंगुल से भोजन पर्यंत किया जाता है. यह E आत्मा अंगुल नीन प्रकार का कहा है. तद्यथा-१ सुची अंगठ, . प्रतर गल और 3 घनामुल, असत्य कल्पना से तीन अंगुल लम्बी एक आकाश प्रदेश की चौडी श्रेणि को सूबी अंगुल काना. मुनी अंगुल को सुची अंगुल से गुना करे अर्थात् 3+3=32. अंगुल की श्रेणि सो प्रतर अंगुल. प्रतर +को मूह से गुनाकार करे अर्थात् 1+1327 अंगुल प्रमान श्रेणि सो घनांगुल, यह 349%D27 तो। 48+ नाम प्रमाण 488428+ For Private and Personal Use Only