________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र ॐ अर्थ मनकादक बाल ब्रह्मचारी पनि श्री अमंलक ऋषिजी // छण्णउइ अहम पुरिसा, चउरुत्तरं माझमल्लाउ // 3 // हीणावा अहियावा, जे खलुसर सत्तसापरिहोणा ते उत्तम पुरिणं अवसाण पेसत्तण मुवति // 3 // एष्णं अंगुल पमाणेणं छ अंगलाईपाउ. दोपया विहत्थी, दो विहस्थीउ रयणी, दो रयणीउ कुत्थी. दो कुत्थीउ दंडं- धणु-जुगे-मालिया-अक्ख-मुसले, दो धणुसहस्साई गाउय, चत्तारि गाउयाई जोयणं, एएणं आयंगुलेणं किं हो सो अधम पुरुष. 105 अंगुल का शरीर से सो मध्यम पुरुष तथा 1.8 अंमुल से तीन तथा अधिक जो पुरुष हो परंतु आदेय वचनबंत. सत्व धैर्यवंत रूपादि सार युक्त मनता रहित हो उसे मी पक्षम पुरुष जानना. वह स्ववश नहीं रहता अन्य की भाला में पायाला सेवक पना परचा है. इस प्रकार के अंगुल प्रमान करके 6 चंगुल का / पाँव, 2 पाँच की पोलस्ती, दो विहस्ती काय, 2 हाथ की हुच्छो. 2 कुच्छी का दंड-धनुष्य-युग-नासिका-अक्ष मुशल हे ता है. 20 * धनुष्य का गाठ, .. गाउ का योजन. अहो भगवन् ! इस पर का क्या प्रयोजन बै! दो शिष्य: इप आत्मांगल: का जिस वक्त जो मनुष्य होते हैं उस वक्त उर धनयों के आत्मांगुल कर के कुदा तलाव, इड, नदी, बावरी. पुष्करनी, नेहर, गुनाली, तलाव. ताब की पंक्ति दिलों की पक्ति, जपान नंगल, बम, बीके बनराजी, देवालय, सभा, पानी कीप्रपा, स्थुभ, खाइ, नगर के फिरतो खाइ, कोट यहक, रास्ता नगर .२का प्रक-राजाबहादुर कालामुखदेवमहायजी मालापसादरी. ! - For Private and Personal Use Only