________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्पमाणे ! दुविहे पण्णत्ते तंजहा-पदेस निप्फन्नेय विभाग निप्फन्नेय // 9 // से किं तं पदेस निप्फन्ने ? पदेस निप्फन्ने ! एगपदेसोगाढे, दुपएसोगाटे, तिपएसोगाढे, संखिज्ज पएसोगाटे, असंखिज एएसोगाढे, से तं पदेस निप्फन्ने // 10 // से किं तं विभाग निप्फन्ने? विभाग निप्फन्ने ! (गाहा) अंगुल विहत्थी रयणी कुत्थि, धणु गाउयंच बोधव्वे // जोयण सेढी पयरं लोग मलोगे विय तहेव // 11 // से किं तं अंगुले ? अंगुले तिविहे पण्णत्ते तंजहा-आयंगुलं, उस्सेहंगुले, पमाणंगुले॥ अहो भगवन् क्षेत्र प्रमाण किसे कहते हैं? अहो शिष्य क्षेत्र प्रमाण दो प्रकार कहे हैं. तद्यथा-१ प्रदेश निप्पन्न और 2 विभाग निष्पन्न // 9 // अहो भगवन् ! प्रदेश निष्पन्न क्षेत्र प्रमाण किस को कहते हैं ? अहो, शिष्य ! प्रदेश निप्पन्न क्षेत्र प्रमान सो एक प्रदेशावगाही दो प्रदेशावगाही तीन प्रदेशावगाही यावत् ॐ संख्यात प्रदेशावगाही असंख्यात प्रदेशावगाही पुढलों का प्रदेश निष्पन्न कहना. // 10 // अहो भगवन् ! विभाग निष्पन्न क्षेत्र प्रमान किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! निभाग विपन्न क्षेत्र प्रमान, सो-अंगुल. * विहस्ति (वेत ) हाथ, कुच्छी, धनुष्य, गाउ, योजन, श्रेणि, प्रतर, लोक, अलोक. जानना. // 1 अहो भगवन् ! अंगल किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अंगुल तीन प्रकार के कहे हैं तद्यथा 11 अनुवादक बालब्रह्मवारि मुनि श्री मख *प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी अर्थ For Private and Personal Use Only