________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से कि तं मागे मागे? च उबिहे पणते तं जहा-१ दच्चप्पमाणे, 2 खेत्तप्पमाणे, कालप्पमाणे, 1 भावप्पमाणे // 1 // से किं तं दवप्पमाणे ? दवप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-पदेस निप्फन्नेय, विभाग निष्फन्नेयासे किं तं पदेस निप्फन्ने ? पदेस निम्फन्ने ! परमाणु पोग्गले, दुपएलिए जाव दसपएमिए, संखेजपएसिए, असंखेज्ज पएसिए, अणंत पएसिए, से तं पदेस निप्फन्ने // से किं तं विभाग निप्फन्ने ? विभाग निष्फन्ने ! पंचविहे पण्णत्ता तंजहा-१ माणे, 2 उम्माणे, 3 आमाणे ___ अहो भगवन् ! प्रमाण किसे कहते हैं ? हे शिष्य ! प्रमाण के चार प्रकार कहे हैं तद्यथा- 1 द्रव्य प्रमाण, 2 क्षेत्रप्रमाण, 3 काल पमाण, और 4 भावप्रमाण // 2 // अहो भगवन् ! द्रव्यममाण किसे 5 करते हैं ? अहो शिष्य ! द्रव्यप्रमाण के दो भेद कहे हैं, तद्यथा-१ प्रदेश निष्पन्न और 2 विभाग निष्पन्न // अहो भगवन् ! प्रदेश निप्पन्न द्रव्य प्रमाण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! प्रदेश निष्पन्न जिद्रव्य प्रमाणसो-पर प्रमाण पुल, द्विपदेशिकस्कन्ध, यावत् दशपदेशिक स्कन्ध, संख्यात प्रदेशी स्कन्ध, असंख्यात प्रहशिक स्कन्ध, यह प्रदेश निष्पन्न हुवा / / अहो भगवन् ! विभाग निष्पन्न किसे कहते है? अहो शिष्य विभाग निष्पन्न सो-अपने प्रदेश छोडकर अपद विविध अथवा विशिष्ट जो भासविकल्प तथा प्रकार उस कर जो निष्पन्न हो वह विभाग निष्पन्न, उस के पांच प्रकार कहे हैं, तद्यथा-१मान, 2. १.अनुवादक वाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी प्रकाशक-राजाबाहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी For Private and Personal Use Only