________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ल दसपुरं, से तं द्विगु // // से किं तं तःपुरिसे ? तप्पुरिसे-तित्थे कागो-तित्थकागो, वणेहत्थी-वणहतर्थ, चणेवराहो-वगवराहो, वणेमहिसो-वणमात्थसो, वणेम उरोवणमउरो, से तं तत्पुरिस // से कि तं अब्बई भावे ? अव्वइ भावे-अणुगामअणुणदियं अणुफरिहं-अणुचरिहं से तं अव्वइ भावे ॥से किं तं एगसेसे ? अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी समास दिखलाये गये हैं. जैसे तीर्थ में काक रहता हैं वह तीर्थ काकः वन में हस्ती होता है उसे वन हस्ती कहते हैं, वन में चराह रहता है, उसे बना कहते हैं. वन में महिप रहता हैं उसे वन महिषी में मयुर रहता, उस वः गयर इते हैं. यह तत्पम्प समाप्त हवा, अहो, भगवन् ! अव्ययी भाव समास किसे कहत हैं ? अहः शिष्य ! अध्ययो भाव सामस के निम्नोक्त उदाहरण हैं जैसे-ग्राम के समीप सो अनुग्राम नदि के समीप सो अन दी, खाइ के समीप सा अनुफारहा, और जो मार्ग के समीप है सो अरचारियम् है यह अध्ययीभाव समास हवा. अहो भगवन् / एक शेष समास किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भो सामान्य जाति के वाचक शब्द हैं उन का लोपकर जब एक पद शेष रहनाय उसे एक शेष समास कहते है परंतु वह एक शेष समास पूर्व पदों का भी वाचक रहेगा पुरुवश्व पुरुष-पुरुषा. यहां पुरुष शब्द को द्रिकचन में रखने से दो चार दिखने की आवश्यीत्त महाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामतादजी * For Private and Personal Use Only