________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 887 48. 0 8 अर्थ: गुब्भगदारमेरावतिकमुप्पनो // वलण उनामरसो लज्जा संका जणलिंगो // 1 // वेलणोरसो जहा कि लोय करणीआओ // लज्जणतरगं तिलिजयामोक्ति, वारिजमि गुरुजणो, परिश्रय बहुति // // असुई कुणिमदु दसण, संजोगाभास गंध निप्फन्नो // नि अपिहिता लक्खणो, रसाहाइ वीमच्छो // 12 // वीभन्छो अतिक्रम करना इत्यादि कान से लज्जा इस उत्पन्न होता है. इस रस के शंका वा लजा चिन्ह है. उदाहरण जैसे नव अपनी प्याली से कहती है कि देरी प्यारी सखी! जो मेरे भादि के संयोग से रुधिर भचिन प है उन लोगो को दम दि अनेकन नारियों को दिखलाते हैं। यद्यपि यह मेरे पतिव्रत धर्मशंग करते हैं पांत तो परम लज्जित होती हूं क्यों कि जब मैथुन क्रिया नानी लज्जा उत्पन्न अपर या तो मेरे उदाहरण ही देर रहे हैं इसलिये इस संसार में इस से बह कर लज्जा का स्थान क्या होगा, अपितु कोई भी नहीं. अंतः विवाहादि में भी मरें वस्त्र दिखलाये जाते हैं इसलिय परम लज्जित होती जाती हूं.सो इसी का नाम लज्जा रस है. ॥१०.११॥ीभत्स रस उसे कहते हैं कि जो अशचि मांसपिंड दर्दशन, इत्यादि के वारंवार देवमे से दुर्गति के निमित्त से वैराग्य और दया भाव उत्पन्न होता है वही धीमत्स रस है. 1, अपितु यह वार्ता मोक्ष गमन आत्मा की अपेक्षा की गई है. // 12 // भार वे धन्य कि मिनोने 18+ एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुथ मूल नाम विषय 38052486 For Private and Personal Use Only