________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवलोगम्मि जं जिणवयणे अच्छा, तिकाल जुत्ता मुणिजति // 7 // भयजमण ण रूवमहंधगार चिता कहा समुप्पन्नो, समोह संभाविमाय, मरणलिंगी रसोरुहा // 8 // रोहोरसा जहा भिउडी विडंबिय मुहो // दोहइयरुहिरभो, ? किण्णा हणीसपमुसं असुरणिभो, भीमरसिय अइरोइ रोहोसिर // 9 // विणउवयार Annrnme 158 अर्थ 1. अनुवादक कब्रह्मचारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी किमी शास्त्रों में देखने में नहीं आइ. इस प्रकार के जिन वचन में रक्त पने जीव इस लोक में तत्वार्थ के तथा त्रिकाल के स्वाप के पहा जाता होते हैं. // 5-7 !! अब चौथे गैद्र रस का दृष्टांत कहते हैं यंतराल की चेटा के करों को रखकर तथा अंधकार में भय स्थान देव भयानक z श्रण कर हृदय में रोटरगट होता हैं 1 मे जीव मूढता, व्याकलता व विषाद पना धारन 4 करने हैं कितनेक माण का भी त्याग करदेते हैं. इसे गैद्र रस कहना. इसका उदारण जब गैद्र रस त्पन्न होता है तब ललाट में तीन साल उत्पन्न होते हैं. एख मुद्रा विकराल बनती है, दिल में आमंत्रण करता है, अन्य को पाटिन करता है, घात कर अधिर से हस्त यशार भरे रहते हैं. वह भी राक्षस समान बनता है, भयंकर शब्दों कर के अन्य को कहे कि तू भयंकर खाता है. यह रौद्र रस जानना. // 89 // विनय उपचार अश्लील वार्ता, उपाध्यायादि की स्त्रियों से मैशुन कीटा, मर्यादाओं प्रकाशक राजाबहादुर लामसुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. E For Private and Personal Use Only