________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A8 ॥सोइअविल वियपाहाय रुन्नलिंगो रसो कलुणी // 16 // कलशोर सो जहा, पभाय किलामिअयं // बाहागय पफ अन्धीप, यसो तस्स विडो पुत्तिय, दुबलायंने मुईजागं // 17 // निदो समगरल माहाणा, संनयो जो पसंत भावेणं / / अधिः / सगो, सो रसो पसंतो पापको // 18 // तो रसो अहा, लभाव निविगार / / उवसंत पसंत सोमष्टिी, अहीजहं मुणिो सोहलि मुहर शथप अनुयोगद्वार सत्र चतुर्थ मूल अर्थ दियो से अक्का बंध वधय व्याधि से अथहा पुत्रादि की मृत्यु से चिरा को अति उत्पन्न होती है उनी के कारणों से बिना कारला, विलाप करना. मूळावश होना यह सब लक्षण करूणा रस के होते है. # इसमें समाहरण यह है कि जैसे किसी युवती कन्या के पति वियोग से पह कन्या परम दाखित अत्रु, पूनमेज, जिस के शुव की कृति मलीन है इत्यादि सक्षमों से निश्चय करती है कि यह करुणा रस 6. से व्याप्त हो रही है. सो इसी को करुणा रस कहते हैं // 17 // अब प्रशांत रस विषय कहत हैं. यन के निर्दोष होने पर व भादों की विशेष शांति होने पर प्रशांत रस की उत्पत्ति होती है. और निर्विकार है ख्य का होना यही प्रशांत का मुख्य लक्षण है. ||18| इस रस में उदाहरण इस प्रकार दिया गया है. कि जैसे कार्यों के उपशम होने से और सौम्य दृष्टि होने से मंतः परम शांति होने पर मुनि / For Private and Personal Use Only