________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र ब्रह्मचारी मुान श्री अमोलक ऋषिजी + कलादिया / ति करणापाणा. से अन्ने सत्थ पारगा // 10 // मझिमस्स रमंताओ, हयंति सुह जीविणो खायति पियति देती, मझिमस्सर मस्सिओ॥ 11 // पंचम सरमसाओ, हवंती पुहवीपती // सूरो संगह कंतारो, अणेग गणणायगो // 12 // धेवयस्सरमताओ, हवंति दुहजीविणी // कुवेलाय कुवित्तिय, चोराचंडाल मुट्ठिया // 13 // णेसाहस्सर मंताओ, होति हिंसगावश // जंघाचारा जेहवाहा, पारगामी होने हैं. // 10 // मध्यम स्वर बाले जीव मुख पूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं, उम के खान पान करमे में वा देने में किसी प्रकार से विध्न उपस्थित नहीं होते हैं परंतु पदार्थो के विशेष संग्रा करने में वे असमर्थ होते हैं. इसी से वे मध्यम स्वर आश्रित कहे जाते हैं. // 11 // पंचम स्वर पाले जीव भूमि के भधिपति होते हैं, समर में शूरवीर भी होते हैं, अनेक प्रकार के पदार्थो के भी संग्रह करने वाले होते हैं, और अनेक तर के नाम होते हैं. यह पंचम स्वर के लक्षण करे हैं. // 12 // धैवत स्वर वाले जीव दुःख पूर्वक जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं पुनः जिन के कवस्त्र व दुष्ट भाजीवि का होती है, इस स्वर के धारन करने वाले जीवी चौर्य कर्म, चांडालादि कर्म, काष्टिकादि प्रहार करने वाले होते हैं इसलिय यह स्वर निषिद्ध होता है तथा इस स्वर वाला जीव पाप कर्म विशेष करता है. // 13 // निषाद स्वर वाले जीव हिंसक व अतीव भ्रमण करने वाले होते हैं तथा जयाभों के दम *यशकराजशहादुर लालामुखदेवसझवनी-ज्वालाप्रसादजी. . For Private and Personal Use Only