________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ 4.1 अनुपादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी सत्तसरा जीव णिस्सिया पण्णत्ता तंजहा-( गाहा ) सज्जं रवइमउरो, कुक्कुडोरिसभं सरं // हंसो रवइ गंधारं, मझिमं च गवेलगा // 4 // अह कुसुम संभवे काले, कोइला पंचमं सरं / / छद्रंच सारसाकंचा. नेसायं सत्तमंगउ // 5 // सत्तसरा अजीव निस्सिया पण्णत्ता तंजहा-( गाहा ) सज्जरवइ मुयंगो, गोमुही रिसभं सरं // संखो रवइ गंधारं, मज्झमं गुण झल्लरी // 6 // चउचरण पतिढाणा, गोहिया पंचमसरं // स्वर जीव निस्सृत प्रतिपादन किये गये हैं जिन के द्वारा स्वर ज्ञान की शीघ्र ही प्राप्ति होजाती है.. सो निम्न लिखितानुसार है. १मयूर षड्न स्वर का उच्चारण करता है.२कुकडा (मुर्गा) का ऋषभ स्वर होता है. 3 हंसगांधार स्वर में बोलता है, 4 गौ एलक आदि पशु मध्यम स्वर में बोलते हैं 5 व ऋतु में कोयभ पंचम स्वर में बोलती है, 6 सारस और क्रोंच पक्षी घेवन स्वर में उच्चारण करते हैं. और 7 सप्तय स्वर निषाद में इस्ती उच्चारण करता है. यह सात ही स्वर जीव निधाय से वर्णन किये गये. // 4-5 // अब अजीव निश्राय से जो है सो कहते हैं. 1 मदंग षड्न स्वर में बजता है, 2a मोमुखी-रामवादित्र रिषभ में बोलता है. 3 शंख गांधार स्वर में बोलता है, मध्यम स्वर झालरछैणों का होता है, चार मांव वाली भूमि पर प्रतिष्ठित गोधिका मे से पंचम स्वर नीकलता है. ढोल नामक वादिंघ धैवत स्वर में उच्चारण करता है और ७महा भेरी नामक वादिन सप्तम निषाद प्रकाशक-राजवहादुर छाला मुखदेस्सहावजी ज्वालामसादनी * For Private and Personal Use Only