________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 < Exएकत्रिंशतम-अनुपोमदार सूत्र-चतुर्थ मूल निफप्ने, मे तं सन्निवाइए // से तंछ नामे // 123 // से कि तं सत्स नामे ? सत्त नामे सत्त सरा पणत्ता तंजहा-१ (गाहा) सज्ने, 2 रिसहे, 3 गंधारे, 4 मज्झिमे. 5 पंचमे सरे // 6 धेवए चेष 7 निसाए सरा सत्त वियाहिया // 1 // एएसिणं सत्तण्हं सराणं सस सरठाणा पाणना तंत्रहा-( गाहा ) सज्जंच अग्ग। जीहाए, उरेण रिसहं सरं // कंठोग्गएणं गंधारं, मज्झ जीहाए मज्झिमं // 2 // नासाए पंचमंबूया,दंतोटेणे य धेवत।भमुहखेवमणसाए, सरष्टाणा वियाहियाइ॥ 3 // प.मिक व पारिणामिक निष्पन्न नाम कहा. यह समिपातिक भाव कहा. यह नाम का कमन हुवा. // 123 / सात नाम का कवन कहते हैं-अहो भगवन् ! सप्त नाम कितने प्रकार से वर्णन किया गया मे है? अहो शिष्य : सात नाम के अंतर्मत सात स्वरों का वर्णन किया गया है जिन के नाम-१ षड्न E स्वर, 2 रिषभ स्वर, 3 गांधार स्वर, 4 मध्वम स्वर, . पंचम स्वर, 6 धेरत स्वर, और 7 निषाद स्वर. अब इन सातों स्वरों के उत्पत्ति स्थानक बताते हैं. 1 पहज स्वर जिना के अग्रभाग से बोला, जाता है, 2 रिषभ स्वर का स्थान हृदय है, ३गांधार स्वर कंगन से निकलता है, ४मध्यम स्तर जिव्हा के 2 मध्य भाग से घोलाना है, 5 नासिका से पंचम स्वर बोला जाता है, ६दांवके नोग से धैवत स्वर निकलता है और 7 निषाद स्वर ने की भ्रकुटी के भाक्षेप से बोला मावा है. // 1-3 // 3 नाम विषय + + A For Private and Personal Use Only