________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतर्य पूष 228 अथे २चेव, भणिओ होति दुण्णिओ // सरमंडलंमिगिजते, पसत्था इसी भासिया // 29 // केसी गायइ भहुरं ? केसी गायइ खरंच रुक्खच // केसी गायति चउरं / * केसीय विलंबितं दुतं फेसीयाए विस्सरं पुण केरसी ( गाथा धिकमिद ) // 30 // गोरी गायइ महुरं, काली गायति खरंच रुक्खंच // सामा गायति चउरं, काणी अविलंवियं दुतं अंथा // 31 // बिस्सरंपुण पिंगला ( गाथाधिकामिदमपि)। सत्त विषय कहते हैं. तीर्थ करोंनेसंस्कृत पाकृत ये दोनों भाषा प्रतिपादन की है और दोनों भाषाओ में स्वर मंडळ गायन किया जाता है. और यह दोनों भाषा सुंदर है और ऋषि भापित है. ( यहां पर 4 ऋषि शब्द का अर्थ भगवान से है.) // 29 // अब फिर प्रश्न कहते हैं कि कौनसी स्त्री मधुर गीत गाती है,* कौनसी स्त्री खार और रूक्षीत गाती है. कौनसी श्री दक्षता पूर्वक गाना गाती है, कौनसी स्त्री विलंब से गाती है, कौनसी स्त्री शीघ्रता स माला है और कौनली स्त्री विस्वर गाती है ? // 3 // 1 गौर वर्ण वाली स्त्री मभर गीत गाती है, काले वर्ण वाली स्त्री कर्कश गीत गाती है, श्याम वर्ण वाली स्त्री दक्षता पूर्वक गाती हैं. एक आंख वाली खो विलंब से गाती है, नेत्र हीन-अंधी स्त्री शीघर गाना गाती है और कपिल स्त्री विस्वर मानी है, // 31 // अब सप्त स्वरों का उपसंहार कहते हैं-इस स्वर मंडल में सन 4882280 नाम विषय-28-882 For Private and Personal Use Only