________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ अमवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी मउम रिभिम // पदबंध समंताल पउखवं, सत्तसरसी भरणेयं // 25 // अक्वरसमं पथसम, तालसमं लयसमं // गहसमं च निससियं च उससियं, सम्म संचारसमं च सत्तति // 26 // निहो संसारबच हेउजुत्ते मलंकियं / / उबणीय सोवयारं च, मियं मधुर मेवय // 27 // सम्मं अद्ध समं चेब, सव्वत्थं विसमंसजं, तिष्णिवित्तं पयाराई, चउत्थो नो पलभइ // 28 // सक्कया, पागया, विशुद्धि के साथ जब गाना गाया जाता है तब उस गीत को सप्त स्वर विशद्ध कहते हैं // 25 // फिर अक्षर सम ही, पद मम हों, ताल सम हो, लता सम हों, ग्रह सम हों, श्वासोच्छवास सम हो, औ सतार भादि में संचार भी सम हो-यह भी सात गुण स्वर के प्रकारांतर से कहे गये हैं. // 26 // वृत्त के आठ गुण होते है जैसे कि 1 छेद निर्दोष 2 विशिष्ट अर्थ का सूत्र कर हेतु युक्त. 3 अलंकृत, 4 नयों से युक्त, 5 शुद्ध अलंकार पूर्वक 6 विरुद्धादि दोषों सहित 7 मिक्षारी और 8 मधुर. // 27 // फिर भी तीन प्रकार के इस कहे गये हैं जिन के चार पदों के परस्पर समान वर्ण होते हैं उन्हे छेद कहते हैं, जिन के प्रथम पाद व तृतीय पाद और द्वितीय पाद: चतुर्थ पाद समान होघे उने अर्थ समरद कहते हैं परंतु जिस छंद के चारों पाद विषम होवे उसे सर्व विषम छंद कहते है यही तीनों के प्रकार कहे गये हैं परंतु चतर्थ प्रकार कहीं भी उपलब्ध नहीं है. // 28 // अब भाषा प्रका जमा-मावहादुर लाला मुखदेवसहाय जी ज्वालामसाजी, For Private and Personal Use Only