________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 + एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चत मूल +8+ सल्विति नागतिकं, धावातीत्याख्यातकं, परित्यौपसर्गिकं मयत इति मिश्र, से तं / पंचनामे // 11 // से किं तं छनामे ? छनामे ! कविहे पण्णत्ते तंजहा-उदहम, उवममिए. स्वइए खउवसमिए, पारिणामिए, संजिवाइए // // से किं तं 125 उत्तम पुरुष के रूप होते हैं. अब औपसगिक पद का विवर्ण करते हैं जैसे प्र. परा, अप. सम्, अनु, अब. निः, निरादुर वि, आऊ, नि. अधि, अवि, अति, मु, उत. आभ, प्रति, परि, उप यह उपसर्ग और नाना प्रकार के यो स प्ररक्त होते है सो परि मादि उपसों में युक्त भो पद कहे गये हैं औपसर्गिक पद हैं. उपसर्ग के संबंध होने में धातुओं के अर्थ का परिवर्तन हो जाता है यथा-आहार,, विहार. निहार. संहार, महार इसादि प्रयोगों में अर्थ का परिवर्तन होता है इस का विशेष खुलासा ग्याकरण से जानना. अब मीश्र पद का कयन कहते-पीश्र उसे कहते हैं, कि जो दो तीन प्रकरणों से मिल कर चन्द बना है जैसे-सम् उपसर्ग है यमु धातु है और इदंत प्रत्यय है. सो तीनों के पीलने से संयत भन्द बन गया है. इस लिये इस को मीश्र नाम कहते हैं. या पांच नाम का स्वरूप, पूर्ण हो गया. मौर इस को पांच नाम करते // 11 // अहो मगवन् ! , नाम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य प्रकार से कोतवा-उदविक,रोपकमिक, क्षायिक, 4 क्षयोपशयिक 5 पारिणामिक गैर सबिपातिक // 1 // o समवन् ! रडविक किसे काय? बो विश्य : उयिक के 4.30+ नाम विषय 48gga For Private and Personal Use Only