________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र , दधीदं, नदीईह-नदास से कि तं विगारेणं ? विगारणं दंडस्य अग्रं-दंडाय सआगता, सागता, दधि दधीदं, नदीईह-नदीह, मधु उदकं-मधूदकं, बधूऊहते-बधूहते, से तं विगारेणं, से तं चउनामे // 1.9 // स किं तं पंचनामे ? पंचनामे / पंचविहे पण्णत्ते तंजहा. नामिक, नैपातिकं, आख्यातिकं, उवसर्गिकं, मिश्रंच, / अश्व इति नामिकं, तं पंचनामे ? . 48 एकोत्रिंशत्तम अनुयोमदार सूत्र-चतुर्थ मूल * प्रकृति भाष किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! प्रकृति भाव उसे कहते हैं कि संधि कार्य के प्राप्त होने पर भी संधि न होवे. उसे निषेध सधि भी कहते हैं. इस के भी उदाहरन कहते हैं जैसे अग्नीएतौ यहां पर दोनों स्वर का संधि कार्य होना था परंतु प्रथम द्विवचन के रूप के आगे स्वर आने से संधि नहीं होसकती 'Bहै इसलिये सांध नहीं की गई है. वैसे ही पटू+इम-पटूइमौ. शाले+एते शालेएते. माले+इमेम्माले(इमे. यह प्रकृतिभाव हुवा. अहो भगवन् ! विकार होने से पद कैसे बनते हैं ? अहो शिष्य ! विकार से जो पद बनते हैं उस के उदाहरण-दंडस्य+अदंडान. यहां पर दोनों स्वर की सधि होगई. वैसे ही सा+पागतासागता. दधि इद-दधीदं. नदी+इहम्मदीह. मधु+उदकंमधूदकं वधू+उहते वधूहते. यह विकार भाव हुवा. यह चार नाम का कथन हुवा // 109 // अहो भगवन् ! पांच नाम कितने प्रकार से वर्णन किया है ? अहो शिष्य ! पांच नाम पांच प्रकार से वर्णन किया गया है. 20 नयथा-को नाम नापमान आदि कोषों में वर्णन किये गये हैं उन को नामिक कहते हैं तथा माम शब्द 42 48 नाम विषय 48 For Private and Personal Use Only