________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अपोषक ऋषिजी। ? चउणामे!चउविहे पण्णत्ते तंजहा-आगमेण, लोवेण पगइ,विगारोणासे किं तं आगमेणं ? आगमेणं. पयामानि, पयांसि, कूडानि, से तं आगमेणं // से किं तं लोवेणं ? लोणं-तेअत्र, तेऽत्र, पटोअत्र, पटोऽत्र, घटोअन, घटोऽत्र, से तं लोवेणं॥ से किं तं पयइएणं पेयाईए-अग्निएते, पटूइमौ; शालाएते, मालेइमे, से तं पगतिए।। अहो भगवन् ! चार नाम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! चार नाम के चार भेद कहे हैं तद्यथा मागम से पद बनता है, 2 लोप से अर्थात् वर्गों के लोप से पद बनता है, प्रकृतिभाव से पद बनता है सो और अक्षरों के विकार से अर्थात् संधी होने से पद बनता है सो. अहो भगवन् ! आगम से पद किस प्रकार होता है ? अहो शिष्य ! विभक्तयंत पद होता है उस में वर्ण का आगम होता है. जैसे पन शब्द का प्रथम विभक्ति का अनेक वचन का रूप पद्मानि हुवा. पयस शब्द का पयांसि रूप #बना, 2 और कूट शब्द का कूटानि पद बना. यह आगम से पद बनने का कहा. अहो भगवन् ! लोप किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! वर्गों के लोप होने पद इस प्रकार होता है जैसे कि-ते और अत्र इ दोनों पद को मीलाने से तेऽत्र हुवा क्यों कि संस्कृत प्राकृत में ऐमा नियम है कि दो स्वर एक साथ आने से उस की संधी होती है. इस से यहां पर संधि में अकार का लोप हो गया. वैसे ही पटी+अच मीलने से पटोनं हुवा. घटो अत्र मीलने से घटोऽत्र : कालोप का . . अहो मगवन् ! काधक-राजाबहादुर काम सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. " For Private and Personal Use Only