________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 125 एकत्रिंश तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ सुशलेसे, मिन्छ।हिट्ठी, अधिर, असन्नी अण्णाणी,आहारी,छ उमत्ये, सयोगी,संसारत्थे, असिद्धे, अकेवली, से तंजीओवध निन्ने // से किं तं अजीबोत्य निष्फलं ? जीयो य कि नामी लेय स, जरालिय सरीर एसोज परिणाम का अचा सरीर ५उग पारणाभियं 3 वा व्यं, वीर, तेअगसरीरं, करना सरीरंच भाणियव्यं, पाउग परिणाभिए बसंधारो-फासे, हे तं अजीवोदय निष्फन्ने / / से तं उदयनिष्फन्ने / शरीर 2 उदारिक शरीर के भयोग में आकर परिणी सुदल, 2 क्रेय शरीर, 4 क्रेय शरीर में आकर पगमे पुद्गल, 5 आहारकीर, 6 आहारक शरीर में आकर परिणमे पुद्गल, 7 तेजस शरीर 8 तेजस शरीर में आकर परिणमे पदल, 9 कार्मा शरीर 10 कार्माण शरीर में आकर परिणमे पुद्गल 11 वर्ण, 12 गंध, 13 रस और 14 स्पर्श. यह अजीव उत्य निष्पन्न हुवा. यह उदय निष्पन्न / वा. और उदय भाव मा कथन हुया. इस जीवोदय निष्पन्न में ऐसा कहा कि जहां तक चउदहवे गुण स्थान नक जीव है वहां तक कर दय होता है और अजीवोदय निप्पम में मुख्यता शरीर के पुद्गलों की दाती है. कर्म पुद्गलों का विपाक शरीर पर देखा जाता है. यह दय नाम हुवा // 112 / / अहो भगवन ! 403.20 नाम विषय 8882 अर्थ ! / For Private and Personal Use Only