________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 129 एकत्रिंशत्तम्-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुथम खीणगोए, उच्च नीय गोत्तकम्म विप्पमुके. खीणदाणांतराए, खीणलाभांतराए, खीण भोगांतराए, संबधोमलसर, खीणवारिय अंतराए, अणंतराए णिरंतराए, खीण. तराए,अंतराय : निकमुन्नासि हे बुद्धं सुने परिगिए अंतगडे,मका दुक्खप्पहाणे, से तं खयान ... बयनामे / / 111 // से किं तं खउवसनिए ?ख उपसमिए दुविहे पण्णत्ते तं जहा-खउवसभेय, खउवम निष्फन्नेय // से किं तं खडवसमे ? खउवसमे चऽहं घाइकम्माणं खउवसमेणं तंजहा-जाणावरणिजस्स, दसणा चरणिजस्स, मोहणिजस्त, अंतराइयस्स खउयसमेणं, से तं ख उवसमे // से किं कर्म रहित होते हैं, ७उच गोत्र, नीर गोत्र. का क्षय करनेवाले. गोत्र रहित अगोत्रीय व ऊंच नीच गोत्र रहित होते हैं. 8 दाग लानाय भो तिमय. उपभोगतगय व वीतिगय के क्षय करनेवाले सिद्ध, बुद्ध. मुक्त अनान व म. दाब राहत होते हैं. यह क्षायिक के भेद हुवे // 114 // अहो भगवन् ! क्षयोपशमिक किसे कहते हैं ? ओशिष्य ! क्षयोपशमिक के दो भेद को हैं तद्यथा-क्षयो पशम व क्षयोपशम निष्पन्न. इस में से क्षयोपशम ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय व अंतराय का क्षयोपशम से होता है इन चारों पनपातिक कर्प की प्रकृतियों में से जो 2 विपाकोदय में भाई हैं। 23093 नाम विषय अर्थ 824867 For Private and Personal Use Only