________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोगाढे आणपुवी, एग पएसोगाढे अणाणपुरी, दुपएसोगाढे अवत्तव्यग, अहवा तियएसोगाढेय एग पएसोगाडेय आणावी, अणाणुपुवीय एवं जहा दबाशुपुबीए, संगहस्स तहा खे ताणुमुवीरवि भाणियब जाव से तं संगहरस भंगो वदसणया // 68 // से हिं तं समोआरे ? समोयारे संगहस्स आणुपुयी दई काह समोयति ? किं आणुपुटकी दवेहिं समोयरंति, अणाणुपुब्बी दव्येहि, अवत्तव्यग दव्वहिं ? तिण्णिवि सटाणे समोयरंति, से तं सभोयारे // 69 // से किं तं अशुगमे ? अणुगये ? अबिहे पणते तंजहा-संतपय परूवणया जाव की भंगोपदर्शनता से तोन प्रदेशावगाही आनुपूर्वी, एक पूरेशावनाही अनानुपूर्वी, द्विप्रदेशागाही अवक्तव्य अथवा तीन प्रदेशावगाही एक प्रदेशावणाही आनुपूर्वी अनानुपूर्वी. यों जैसे द्रव्यानपूर्वी में संग्रह नय से कथन किया वैसे ही यहां क्षेत्रानुपूर्वी में कहना. यावत यह संग्रह नय से भंगोपदर्शनता का कथन हुवा. // 38 // अहो भगवन् ! सयवतार किसे कहते हैं ? समवतार में संग्रह नय से आनपूर्वी द्रव्य कहा समारते हैं? क्या आनद्रव्य में, अन.नपूर्वी द्रव्य में या अवक्तव्य व्य में समवतारते अहो शिष्य ! तीनों अपने 2 स्थान में समवतारते हैं. यह सम्बतार हुवा. // 49 // अहो भगवन् ! अनुगम किसे कहते हैं? अहो शिष्य : अनुगम के आठ भेद कहे हैं. तद्यथा-सत्पद प्ररूपना यावत अर्थ 8.9 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी काशक-राजावहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजो For Private and Personal Use Only