________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमोलक ऋपिनी से किंतं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ? संगहस्स अटुपयपरूवणया एयाइं पंचविहाई जहा खेत्ताणुपुबीए संगहस्स तहा कालाणुपुब्धीए वि भानियवाणि, णवरं ठिइ अभिलावो जाव सतं अणुगमे / सेतं संगहरस अणवाहिया कालाणपुजी // 85 // से किंतं उवणिहिया कालाणुपुब्धी ? उवणिहिया कालाणुपुबी तिविहा पण्णत्ता तंजहा-पुवाणुपुथ्वी, पच्छाणुपुब्बी, अणाणुपुवी // 86 // से कितं पुब्वाणुपुत्री ? वन् ! संग्रह नय से अर्थ पद प्ररूपना कसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! इस के पांचों द्वार का कथन जैसे संग्रह नय का क्षेत्रानुपूर्वी का कहा वैसे ही कहना, यावत् यह अनुमम हुवा. यह अनुपनिधिका का कथन हुवा / / 85 // अहो भगवन् ! उपनिधिका कालानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! उपनिराधिका कालानु के तीन भेद-पूर्वानुपूर्वी, पच्छानुरी व अनानुपूर्वी. // 86 // अहो भगवन् ! पूर्वान पूर्वी किस कहते हैं ? अहो शिष्य ! सर्व से सूक्ष्म जिप के विभाइ न ह सके उसे समय कहते हैं, यह काल की गिनती में आदि भूत है इस लिये प्रथम समय का कथन किया गया है. असंख्यात समय की आवलिका, 3.3773 आचलका का श्वासोच्छवास, 4 साल वालेच्वास का स्तोक 5 सात स्तोक का लब, 6 सात लब का मुहूर्त, 7 नीभ मुहूर्त की एक असे रात्रि, 8 पनरह अहो रात्रि ॐ का पक्ष, 9 दो पक्ष का पास. 10 दो मास की ऋतु, 11 सीन ऋतु का एक अयन, 12 दो अयन / पकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजो. For Private and Personal Use Only