________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Haad एकत्रिंशत्तम्-अयोगटार खर- चमन, पुधी ? पच्छाणुपुब्बी ! हुंडे जाव समचउरंसे, से तं पच्छाणुपब्बी // से किं तं / अणाणुपुब्बी ? अणाणुपुब्बी ! एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरिवाए छगच्छायाए मेटी मात्रभारतो दुरूवमो. से तं अणापए थी। तं नाबी // ले कि मायारी आग बी ? लामाया कुल्ली ! सिलिका 1 तंजहा. माछापु-वी. अपाणपकी !! कि पूजा व गुबी ! छालारो,अवलियाय मिसीहिया आपुल्छाध्याय पडिपुच्छा, छंणाय यि : असा एक से छ पर्यंत का अन्योन्याभ्यास करके दो कम करना. जो संख्या आवे , अनानुपूर्वी का संस्थानानु का कथन हुवा // 92 !! अहो भाव ! समाचारी आनुपूर्ण को है हो शिष्य ! समाचारी आनुपूर्त के तीन भेद कहे हैं. तद्यथा-१ पूर्वानुपूर्वी. 2 पच्छापूर्वी व 3 अन्लान. अहो भगवन् ! पूर्वानपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! इच्छा-गुरु आदि गे कहे कि आप की इच्छा होतो मैं यह काम करूं, 2 पिच्छा-अनाचार सेवन कर मिथ्या दा कृत्य देवे, 3 तहकार-हित शिक्षा के वचन को तहत्ति रहकर प्रमाण करे, 4 जब साधु उपाश्रय में से बाहिर निकले तब आवस्सही कहे. 5 उपाश्रय में आते समय निस्सही कहे, 6 जो कार्य करने का हो सो गुरु को पूछकर करे, 7 कोई मुनि अपना कार्य करने का अन्य मुनि को कहे तो गुरु को पुछ दश समाचारी का कथन अर्थ ? For Private and Personal Use Only