________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र अमुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी : आउकाइए, तेऊकाइए, वाउकाइए, वणस्सइकाइए // अविससिए पुढवी काईए, विसेसिए सुहुम पुढवी काईए, बादर पुढवी काइए / अविसेसिए सुहुम पुढवि काइए, विसेसिए पजत्तय सहम पुढवी काइय, अपजत्तय सुहम पढ़वी काईए // अविसेसिए बादर पुढवी काईए, विसेसिए पजत्तय बादर पुढवी काईए, अपजत्तय बादर पुढवी काइए // एवं आउकाईए, तेउकाईए, वाउकाईए, वणस्सइ काइएय // अविसेसिय अपज्जत्तय भेदेहिं भागियन्वा // अविसेसिए बेंदिए विसेसिए पज्जत्तय बैदिए अपजत्तय बेदिए // एवं तेइंदिए, चउरिदिएवि भाणियत्वा / अविसेसिए पचिंदिए तिरिक्खजोणिय, विसेसिए-जलयर पंचिंदिए तिरिक्खजोणिए, व पंचेन्द्रिय. अविशेष में एकेन्द्रिय और विशेष में पृथ्वीकाण अपकाया, तेउकाया, वायकाया, व वनस्पतिकाया. अविशेषिक में पृथ्वीकाया और विशेषिक में सूक्ष्म पुथ्वी काया व वादर पृथ्वी काया. अविशेषिक में मूक्ष्मपृथ्वी काया और विशेषिक में पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया व अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया. विशेष में गदर पृथ्वी काया और विशेष में पर्याप्त व अपर्याप्त बादर पृथ्वी काया. जैसे पृथ्वी काया का कहा वैसे ही अपकाया, तेउकाया. वाउकाया व वनस्पतिकाया का जानना. अविशेष में द्वीन्द्रिय विशेष में द्वीन्द्रिय के पर्याप्त व अपर्याप्त ऐसे ही त्रीन्द्रिय व चतुगेन्द्रिय का कथन जानना. अब अतिर्यंच पंचेन्द्रिय का कहते हैं. अविशेष में तिर्यंच पंचेन्द्रिय, विशेष में जलचर, स्थलचर, व खेचर तिर्यंच * प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only