________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दव्वेय // अविसेसिए जीवदव्वे, विसेसिए-गैरइए, तिरिक्खजीणिए, मणुस्से, देवे // अधिसिए नेरेईए, विसेसिए रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, बालुयप्पभाए, पंक:भाए, धूमप्पभाए, तमाए, तमतमाए // अविसेसिए ग्यणप्पभाए पुढदी नेइए विसेसिए-रयणप्पमाए पुढवी नेईए पजन्त अपजत्तर // एवं जाव अविससिप तमतमा पुढवी नेरइओ, विसेसिए-तमतमा पुढवी नेरइओ पजत्तएय अपजाय // 98 // अवित्तिए तिरिक्खजोगिए, विससिए एगिदिए, बेइंदिए, तेइंदिए, चउरिदिर, पंचिंदिए // अविलिए एगिदिए, विसेलिए-पुढवी काईए, 'E स्थान में गभित हो जाये और विशेष नाम उसे कहते है कि जो बेवल उसी द्रव्य का बोधक हो. उदाहरण---अविशेप द्रव्य इस में जीव व अजीव द्रव्य का गायनाना है और विशेष में जीव द्रव्य व अजीव द्रव्य है. वैसे ही अविशेष नाम जीव द्रव्य और विशेष नाम सो नरक. तिर्यंच, मनुष्य व देवा. अविशेष नाम में नरक गति और विशेष नाम में रस्न प्रभा. शर्कर प्रभा. बालुप्रभा, पंकप्रभा, धूम्रप्रभा तमनभा, व तमतमममा. अविशेष में रत्नप्रभा और विशेष में रत्न प्रभा नरक के नैरयिक पर्याप्त व अपर्याप्त. यों तमतमा पर्यंत जानना. अविशेषिक व विशेषिक का नरक का अधिकार हुवा // 98 // | अब तिर्यंच का कहते हैं. अविशेष में तिर्यंच और विशेष में एकोन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरेन्द्रियः >एमोत्रिशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मल 48 4880280 नाम विषय 80 For Private and Personal Use Only