________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4.अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिला. घुवी-दसकोडीसयाई जाव एक्को, से तं पच्छाणुपुत्वी // से किं तं अणाणुपुब्बी ? __ अणाणुपुव्वी एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसकोडीसय गच्छयाए, सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरुबूजो, से तं अणाणुपुत्वी // से तं गणाणुपुव्वी // 91 // से कि तं संठाणाणुपुब्बी ? संठाणाणुपुब्बी ! तिविहा पण्णत्ता तंजहा-पुव्वाणुपुव्वी, पच्छाणुपुत्वी, अणाणुपुवी // से किं तं पुव्वाणुपुब्बी ? पुवाणुपुव्वी ! समचउरंस संठाणे, निगोह,परिमडले सादी खुजे, बामणे, हूंडे,सेतं पुव्वाणुयुब्बी।से किं तं पच्छाणुपूर्वी में दश अवज से एक पर्यंत की संख्या आती है. अनानुपर्श किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! एक से दश अब्ज पर्यंत एक 2 वहाते 2 अन्योन्याभ्यास करके जो कम करते जो संख्या रहे उसे अनानुपूर्वी कहना. यह गणनापूर्वी का कथन हुआ // 95 // अहो भगवन् ! संस्थानानपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! संस्थानानुपर्षी के बीन भेद कहे हैं. तद्यथा-१ पूर्वानुपूर्वी, 2 पच्छानुपूर्वी व 3 अनानुपूर्वी. अहो भगवन् ! पुर्वानुषी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! 1 समचतुत्र संस्थान, 2 न्यग्रोध परियंटल संस्थान.३ साद्य संस्थान, 4 कुब्ज संस्थान, 5 वायन संस्थान व 6 इंडक संस्थान. है इस को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं. अहो भगवन् ! पच्छानी किसे कहते हैं ? अगे शिष्य ! पच्छानुपूर्वी में 'हुंडक से समचतुस संस्थान पर्यंत गिनती करना. अहो भगवर ! अनानपूर्वी किसे कहते हैं ? *मकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायनी ज्वालाप्रसादजी. अर्थ For Private and Personal Use Only