________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 18 से किं तं अणाणुपुत्वी ? अणाणुपुव्वी एयाएचेव एगाइयाए एगुत्तरियाए चउवीस गच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो, से तं अणाणुपुवी // से तं उकित्तणाणुपुब्बी // 9. // से किं तं गणणाणुपुव्वी ? गणाणुपुब्बी ! तिविहा पण्णत्ता तंजहा-पुवाणुपुवी. पच्छ णुपुवी. अणाणुपुव्वी ॥से किं तं पुव्वाणुपवी? पुवाणुपुव्वी एगे,दस,सयं,सहस्सं, इससहस्साई, सय सहस्सं, दससयसहस्सोई, कोडी,दसकोडीओ, कोडीसयं, दसकोडीसयाई. से तं पुवाणुपुवी // से किं तं पच्छाणुपुवी? पच्छाणुकहते हैं ? अहो शिष्य ! श्री वर्धमान स्वामी से श्री ऋषभनाथ पर्यंत पच्छानुपूर्वी कहते हैं. अहो भगवन् ! अनानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! एक से चौवीस पर्यंत एकेक की उत्तरोत्तर वृद्धि करते 2 अन्योन्याभ्यास करे और जो संख्या अघि उस में से दो कम करे वह अनानपूर्वी. यह उत्कीतनानुपूर्वी हुई // 10 // अहो भगवन् ! मणनानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! मणनानुपूर्वी के तीन भेद कहे हैं-पूर्वानुपूर्वी, पच्छानुपूर्वी व अनानुपूर्वो. अहो भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! एक, दश, शत, सहस्र, दशसहस्त्र, लक्ष, दश लक्ष, क्रोड व दश क्रोड, सो क्रोड (अन्न) गरकोडदश (अन्ज)यह पूर्वानुपूर्वी हुई. अहोभगवन् ! पच्छानुपूर्वी किसे कहते हैं? अहो शिष्य पच्छानु-11 एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्थ मूल. 498 48 उतकीनानुपूर्वी का कयन 1 For Private and Personal Use Only