________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4880 एकत्रिशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुथ मूल -889 समया, उक्कोसेणं असंखेनं कालं. णाणा दव्वाइं पड़च्च णत्थि अंतरं // नगम ववहाराणं अवत्तव्वग दव्वाणं पुच्छा ? एगं दव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज कालं, पणा दन्वाइं पड़च्च णत्थि अंतरं. // भाग भाव अप्पाबहं चेव जहा खेत्ताणपुवीए तहा भाणियबाई. जाव से तं अणुगमे. से तं णेगम ववहाराणं अणोवणिहिया कालाणपत्री॥ 83 // से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणपख्वी ? संगहस्स अणोवाणिहिया कालाणपुवी पंचविहा पण्णत्ता तंजहा अट्ठपयपरूवणया, भंगसमुक्कि लणपा, भंगोवदंसणथा, समोयारे, अणुगमे // 84 // द्रव्य आश्री नघन्य दो समय उत्कृष्ट असंख्यात काल का और बहुत द्रव्य पाश्री अंतर नहीं है. नैगम / व्यवहार नय से अवक्तव्य द्रव्य के अंतर की पृच्छा, अहो शिष्य ! एक द्रव्य आश्री जघन्य एक समय उत्कृष्ट असंख्यात काल और बहुत द्रव्य आश्री अंपर नहीं है. इस का भाम, भाव और अल्पाबहुत जैसे क्षेत्रानुपूर्वी का कहा वैसे ही कहना. यह अनुगम का कथन हुवा. यह लेगम व्यवहार नय की / अनुपनिधिका कालानुपूर्वी का कथन हुवा // 83 // अहो भगवन् ! संग्रह नय से अनानिधिका कालानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! संग्रह नय से अनुपनिधि का कालानुपूर्वी के पांच भेद कहे हैं। तद्यथा-अर्थ पद प्ररूपना, मंग समुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार व अनुगम // 84 // अहो म O823 कालानुपूर्वी का कथन >488 For Private and Personal Use Only