________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल *38* पुब्बी, पच्छाणुपुब्बी, अणाणुपवी // से किं तं पुवाणुपुवी ? पुव्वाणुपुवी सोहम्मे ईसाणे सणंकुमारे माहिंदे बंभलोए लंतए महासुक्के सहस्सारे आणए पाणए आरणे अच्चुए, गेवेजविमाणे, अणुत्तरविमाणे. इसिपब्भारा. से तं पुव्वाणुपुव्वी // से किं तं पच्छाणुपुब्बी ? पच्छाणुपुब्धी ! ईसिपब्भारा आव सोहम्मे, से तं पच्छाणुपुब्बी / / से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुब्बी! एयाएव एगाइयाए एगुत्तरियाए पन्नरस गच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो, से तं अणाणुपुब्बी // अहवा उवणिहिया खेत्ताणुपुवी तिविहा पण्णसा तंजहा-पुवाणुपुब्बी, पच्छाणुपुब्बी, अणाणुपुब्बी // अनानुपूर्वी के तीन भेद कहे हैं-पूर्वानुपूर्वी, पच्छानुपूर्वी व अनानुपूर्वी. इस में पूर्वानुपूर्वी सो सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म लोक, लंतक, महाशुक्र. सहस्रार, आणत. प्राणत, आरण, अच्युत, अवेयक विमान, अनुत्तर विमान व ईषत्यागभार पृथ्वी. पच्छानुपूर्वी में ईषत्प्रागमार पृथ्वी, अनुत्तर विमान यावत् सौधर्म देवलोक. यह पच्छानुपूर्वी अनानुपूर्वी में एक से पसरह पर्यंत अन्योन्याभ्यास करके आदि अंत को छोडकर शेष रहे. यह अनानुपूर्वी हुई // 75 // अथवा उपनिधिका क्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद-१ पूर्वानपूर्वी, २१च्छानपूर्वी व 3 अनानपूर्वी. इस में से अमानुप: किसे कहते हैं? अहो 8288 अनुपनिधि का क्षेत्रानुपू 428 For Private and Personal Use Only