________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -- उन्नीस भंगा भाणियबा जाब से तं णेगा यवहाराणं भंगोत्रसपणा // 8 // से किं तं समोबारे ? समोयार णेगम ववहाराण आणुपुली दवाई का समयांति किं आणली दवहिं समोसरंति, अणाणुपुची दम्वेहिं ? एवं तिणि दि सहाणे समायति इति भणियव्वं. मे तं समोयारे // 82 // से किं तं अणुगग ? अगुगमे ध्वविहे पणते जहा-संतपय परूवणया जाव अबहुंचे॥ गस यवहारा अपनी कि अस्थि पत्थि ? निपाति नमावि अत्यि प्रेमन ववहाराणं आगुपुवी दव्या कि रखे जाई असंखजाई अणंताई ? तिष्णिवि णो / कहना यावर गदा व्यवहार नय से भगोपदर्शनता या कपल हवा / / 81 // अहो भगवन् ! सम्वतार हितेन ? नैरवार नय के मत समानुपूर्वी द्रव्य का कहां समवतारता है? क्या आन नाय र द्रव्य में समवतार होता है ? ती शिप्य ! तीनका अपमे 21 स्थान में पतारना है. यह समसार का कथा हवा / / 8.! हो भाव ! नाम किसे को हैं ? अशिष्य ! अनुगमके नव भेद कड़े हैं या- प्ररूपना यावत् अल्लाबत. नैगम व्यवहार नय के मत से आनुपूर्वी द्रव्य की क्या अस्ति है ? अहो गौतम तीनों की नियमा अस्ति है. *प्रकाशक-रानावहादुर लाला सुखदेवसहाय जी ज्वालाप्रसादजी. अर्थ For Private and Personal Use Only