________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 . कालान हियाए // तत्थण जा सा उणिहियाए साट्रप्पा. तत्थणं जा सा अणोवणिहिया स दुपिहा पण्णत्ता तंजहा--णेगम बहाराणं संगहरसय // 77 // से किं तं णेगम यवहाराणं अणोवणिहिया क.सापुवी ? गम ववहाराणं कालापानी पंचविता पण्णसा तंजहा-अद्वराय परवणया, भंग समुकिगया, भंगो दशणया, समोयारे, अणुगमे // 78 // से किं तं गम ववहाराणं अटुपय परूवाण / ! तिसमय ठिइए आणुपुब्धी जार दसान्य टिईर आणबी. संखिज समय दिए आणुपुब्बी, असंखिज समय ठिईए आपुपुत्री, एग रुमम ठिईए अगाणुपुब्बी, दुणसमय ठिईए या अनुपनिधिका. उस में उपनिधिका का वर्णन यहां पर नहीं करने का है, और अनुपनिधिका के दो भेद नैगम महार व सरह / 77 !! अहो भगवन् ! गप व्यवहार नय से अनिधिका कालानु. पूर्वी किसे कहते हैं? यो गौना ! नए पवार नय के मत से अनानिधि कालान पूर्वी के पांच भेद को गिनना -1 अर्थ पद प्रसन, भंग सल्कीननता. मंगोपदर नता, 4 समवतार 15 अनु गम // 78 // महो भगवन् ! अर्थ पदपना किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! समर की स्थिति 18 वाले सावत् बन समय को स्थितिवाल आर पूर्वी. संख्यात समय की स्थितिवारे आपूर्वी असंख्यात समय की स्थितियाले आनुपूर्वी, एक समय की स्थितिकाले बनानी और दो समय की स्थितिबाले 1883 एकत्रिंशत्तम अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल at का कथन-8805-800 / For Private and Personal Use Only