________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4.अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी से किं तं पुब्बाणुपुब्बी ? पुवाणुपुब्यो ! एगपएसोगाढे दुपएसोगाढे जाव दसपसोगाडे संखिज पर लोगाडे जाव असंखिज पएसोगाडे, से तं पुवाणु मुवी // से किं तं पच्छाणपत्री ? पच्छाणुपुब्बी ! असंखिज पएसोगाढे जाव एगपएनोगाढे, से तं पच्छणुपुबी // से किं तं अणाणपब्बी ? अणाणुपब्बी ! एयाएचैव एगाइथाए एगुत्तरियार अखिज्ज गच्छगयाए सेडीए अन्नमन्नब्भासो दुरुवृणो. से तं अणाणुपनी से उमिडिया खेलापरली // से त खत्ताणपनी / / 76 // से कितं कापुमती ? कालाणुपुःधी ! दुनिता पणया संजहा-उवणिहियाए. अपोणिशिष्य। एक मदेशावमी प्रदेशावादी, तीन प्रदेशावगाती यावत् दश प्रदेशावगाही, संख्यात प्रदेशाकमही असंख्यात प्रदशावगाही यह पूर्वाना. अहो भगवन् ! पठानपूर्वी किसे कहते अहो शिप्प ! असंख्यात प्रदेशाकमाही, संन्यात प्रदेशागाही यावत् एक प्रदेशागाही. यह पच अहो भगवन् ! अनानु किसे कहते हैं ? अहो विष्य ! एक से असंख्यात पर्यंत का अन्योन्या भ्यास करके दो कम करे और जो संख्या रहे उसे अनामतुवी कहत हैं. यह उपाधिका क्षेत्रानुपूर्वी हुई. यह क्षेत्रानुशी का कथन हुवा // 76 / / अब कागनी का कथन करते हैं. यही भगवन् : कालानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! कामनुपूर्वी के दो भेद कहे हैं तथथा-१ उपनिधि का बकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी / For Private and Personal Use Only