________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 88+ 22 एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल ___ जाव रयणप्पभा. सेतं पच्छाणुपुवी // से किंतं अणाणुपुब्बी ? अणाणुपुव्वी ! एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए सत्तगच्छगयाए सेढीर अन्नमन्नव्भासो दुरूवूणो सेतं अगाणुपुन्वी // 73 // तिरिय लोय खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता तंजहा पुव्वाणुपुब्बी, पच्छणुपुब्बी, अणाणुपुब्बी // से किंतं पुव्वाणुयुवी ? पुव्वाणुपुब्बी ! ( गाहा )-जंबुद्दीवे लवणे, धायइ कालोय पुक्खरे वरुणे; खीर धय खोय नदी, अरुणवरे. कुंडले रुयगे // 1 // आभरण वत्थगंधे, उप्पल तिलएय पुढवि पर्यंत कहना और अनानुर्वी में इन सातों को एक 2 वढाकर अन्योन्याभ्यास करते जो अंक आवे जिस से दो कम करे (1-2.3-4-5-6-7 ) इन का परस्पर गुनाकार करने से 5040 होवे. उस में से दो कम करने से 5038 अनानुपूर्वी हुइ. // 73 // तोळ लोक क्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद कहे हैंपूर्वानपूर्वी, 2 पच्छानु / न अनानुपूर्वी. अहो भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य, जम्बूद्वीप, लवणसम , धात की खंड द्वीप, कालोदधि समुद्र. पुष्कर द्वीप, पुष्कर समुद्र, वरुण द्वीप वरुण समुद्र, क्षीर द्वीप, और समुद्र, घृत द्वीप, घृत समुद्र, इक्षु द्वीप, इक्ष समुद्र. नंदीश्वर द्वीप, नंदीश्वर समुद्र, 'अरूण वर गप, अरूण वर समुद्र, कुंडल द्वीप, कुंडल समुद्र, रूचक द्वीप. रूचक समुद्र इस प्रकार ही / अर्थ अपनाधाध का क्षेत्रानुपूमी 498 280 For Private and Personal Use Only