________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजा उड्डलोए सें तं पुवाणुपुब्बी // // से किं तं पच्छाणपबी ? पच्छाणुपुन्बी उड्डलोए / * तिरिलोए अहोलोए, से तं पच्छाणुपुब्बी // // से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुवी एगाए चेब एगइयाए एगुत्तरियाए तिगिच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो से तं अणाणुपुब्बी // 72 // अहो लोय खेत्ताणुपुब्बी तिविहा पप्णत्ता तंजहा-पुवाणुपुत्वी, पच्छाणुपुब्बी अणाणुपुब्बी से किं तं पुवाणुपुवी ? पुवाणुपुन्वी ! रयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालुपप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पमा, तमप्षमा तमतमप्पभा सेतं पुन्वाणुपुवी // से किं तं पच्छाणुपुवी ? पच्छाणुपुर्व तमतभा पञ्चानुपी में अब लोक, ती लोक ब अधोलाक हो. यह पश्चानुपूर्वी. अहो भगवन् ! अनानुपूर्वी किसे कहते अहो शिष्य ! इन तीनों का अन्योयाभ्यास करे अर्थात् एक को दुगुने करने से होने दो को तीगुने , से 6 होवे. इस में दो कम करे उसे अनानुपूर्वी कहते है. अर्थात् यहां पर 6 में से 2 को कम करते 4 अनानपूर्वी हुई. // 72 // अधीक क्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद. तद्यथा-१ पुर्वानुपूर्वी, 2 पच्छानुपूर्वी व अनानुपूर्वी. इस में पुर्वानुपूर्वी रत्न प्रभा, 2 शर्कर प्रभा, 3 बालुक प्रभा, 4 पंक प्रभा 5 धूम्र +प्रभा, 6 तमःप्रभा और 7 तमतमः प्रभा. पच्छानुपुर्वी में तमतम प्रभा, तमः प्रभा यावत् रत्न प्रभा *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायनी ज्वालामसादजी अर्थ For Private and Personal Use Only