________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गद्वार मूत्र-चतुर्थ मूल एकात्रशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र परूवणयाए किं पयोयणं ? संगहस्स अट्ठपय परूवणयाए संगहस्स भंग समुकित्तणया कजइ // 66 // से किं तं संगहस्स भंग समुक्कितणया ? संगहस्स भंग समुक्तित्तणया अत्थि आणुपुब्बी, अत्थि अणाणुपुब्बी, अस्थि अवत्तव्वए अहवा अस्थि आणुपुवीय, अणाणुपुवीय एवं जहा दवाणुपुब्बीए संगहस्स तहा भाणियन्वं जाव से तं संगहस्स भंग समुक्त्तिणया // एयाएणं संगहस्स भंग समुकित्तणयाए किं पयायणं ? एयाएयं संगहस्स भंग समुक्किचणयाए संगहस्स भंगोवदसणया कजइ // से किं तं संगहस्स भंगोवदसणया ? संगहस्स भंगोवदंसणया ! तिपए गाही अवक्तव्य. यह संग्रह नय से अर्थपद प्ररूपना हुई. संग्रह नय से इस अर्थपट प्ररूपना करने क्या प्रयोजन है ? अहो शिष्य ! अर्यपद प्ररूपना से भंग समुत्कीर्तन किया जाता है. // 66 // अहो, भगवन् ! संग्रह नय से भंग समुत्कीर्तन किसे कहते है ? अहो शिष्य ! संग्रह नय से मंग समुत्कीर्तन से आनुपूर्वी है, अनानुपूर्ण है, अब कव्य है. अथवा आनुर्वी अनानुपूर्वी है. यों द्रव्यानुपूर्वी में , संग्रह नय से जो भांगे किये वे सब यहाँ कहना यावत् संग्रह नय से भंग समुत्कीर्तनन का कथन हुवा. अहो भगवन् ! इस भंग समुत्कीर्तन का क्या प्रयोजन हैं ? अहो शिष्य ! भंग समुत्कीर्तन से गंगोपदशना होती है. // 7 // अहो भगवन् ! संग्रह नय से भंगोपदर्शनता किसे कहते हैं ? संग्रह नय - अनुपनिधि का क्षेत्रानुपूर्वी 2800 888 For Private and Personal Use Only