________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Hot 8. 48808> एकत्रिंशतम-अनुयोगद्वार सुत्र-चतुर्थ मूल णेगम ववहाराणं अवत्तव्यग दवाई दवट्ठयाए अणाणुपुवी दवाइ दवट्ठयाए विसेसाहियाई, आणुपुब्बी हवाई वट्ठयाए असंखेजगुणाई, पएसट्टयाएसव्वत्थोवाइं णेगम ववहाराणं अणःणुपुब्बी दवाइं, अवत्तव्यग दवाई पएसट्टयाए विसे साहियाई, आणुपुबी दबाई पएसट्टयाए असंखेजगुणाई, दबढ़पएसट्टयाए-सव्वत्थोवाइं गम क्बहारणं अवत्तव्वग दव्वाइं दवट्ठयाए, अणाणुपुवी दवाई दबट्टयाए अपएसट्टयाए विसेसाहियाई, अवत्तव्यग दवाई पएसटुयाए विसेसाहियाई, आणुपुवी दवाई दव्वट्ठयाए असंखजगुणाई ताई चेव पएसट्रयाए असंखेजगुणाई. से तं अणुगो // से तं णेगम ववहाराणं अणोवणिअसंख्यात गुना. अब प्रदेश आश्री कहते हैं. नैगम व्यवहार : य के तम रो सब से थोडा अनानुपूर्वी अपदी होने से, इस से अवक्तव्य विशेषाधिक प्रदेश आश्री इस से आनुपूर्वी द्रव्य प्रदेश आ संख्यात राने भाव द्रव्य प्रदेश आश्री-सब से योडे नैगम व्यवहार नय के मत से अवक्तव्य द्रव्य / द्रव्य आश्री, इस से आनुपूर्वी ट्रव्य श्री व अदेश आश्री विशेषाधिक, इस से अवक्तव्य द्रव्य प्रदेश आश्री विशेशाधिक, इस से अनुपूर्वी व्य द्रव्य आशी असंख्यात जुना. इस से आनुपूर्वी द्रव्य प्रदेश आश्री असंख्यात गुना, यह अनुगम का कथन हुवा. // यह नैगम व्यवहार नय के मत से अनुपनिधिक। णटुपनिधि का क्षेत्रानुपूर्वी For Private and Personal Use Only