________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक अपिजी अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? तिण्हंपि-एगं दव्यं पडुच्च-जहण्णेण एकं समयं उक्कोसेण असंखजं कालं / नाणा दव्वाइ पडच्च-पत्थि अंतर ॥णेगम ववहाराणं आणुपुत्वी दब्बाई सेस दव्याणं कइ भागे होज्जा ? तिण्णिवि जहा दव्वाणुपुब्बीए। णेगम ववहाराणं आणुयुब्बी दवाई कयामि भावे होज्जा ? णियमा साइपरिणामिए भावे होजा, एवं दोणिवि // एएसिणं भंते ! भेगम बवहाराणं आणुपुत्वी दव्याणं अणाणुपुर्वी दव्वाणं अवतव्वग दवाणय दवट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वपएसट्टयाए कयरे 2 हिंतो अपवावा वहुपाआ वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा, ? सव्वत्थो वा आश्री अंतर नहीं है. भाग द्वार-नैगम व्यवहार नय की अपेक्षा से आनुपूर्वी द्रव्य अन्य शेष द्रव्यों के कितने भाग में हैं ? अहो शिष्य ! तीनों द्रव्य का जैसे द्रव्यानपूर्वी में कहा वैसे ही कहना, भावद्वारनैगम व्यवहार नय के मत से आनुपूर्वी द्रव्य कितने भाव में होवे ? अहो शिष्य ! तीनों ही द्रव्य निश्चय से आदि परिणामिक भाव में पावे. अल्पा बहुत द्वार-नैगम व्यवहार नय के मत से आनु बद्रव्य, अनानुपूर्वी द्रव्य व अवक्तव्य द्रव्य द्रव्य आश्री. प्रदेश आश्री व द्रव्य प्रदेश आश्री कौन किस से अल्प बहुत तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? अहो शिष्य ! सब से थोडा नैगम व्यवहार नय से अवक्तव्य 'द्रव्य द्रव्य आश्री. इस से अनानुपूर्वी द्रव्य द्रव्य आश्री विशेषाधिक इस से आनुपूर्व द्रव्य द्रव्य आश्री. प्रकाशक राजाराषहादुर लाला सुखदक्सहायजी-ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only