________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir : 4888 कात्रशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल एग पएसोगाढा अणाणुपुवीओ, दुपएसोगाढा अवत्तव्यगाई, अहवा तिपएसोगाढेय एग पएसोगाढेय आणुपुब्बीय अणाणुपुवीय, एवं तहा चेव दवाणुपुब्बी गमेणं छब्बीस भंगा भाणियब्या जाव से तं णगम ववहाराणं भगोदंवदसणया // 61 // से किं तं समोयारे ? समोयारे णेगम ववहाराणं आणुपुवी दव्वाइं कहि समोयरंति. १-किं आणुपुव्वी दव्वेहि समोयरंति, अणाणुपुवी दव्वेहि समोयरंति, अवत्तव्वग दयहि समोयरंति ? आणुपुब्बी दव्याई आणुपुब्बी दन्वेहि समोयरंति ? नो अणा गुपुवी दव्वेहि नो अबत्तब्वय दबेहिं समोयरंति एवं तिण्णिविसटाणे समोयरंति आनुपूर्वी, बहुत एक प्रदेशावगाही बहुत अनानपूर्वी और बहुत द्विपदेशावग ही बहुत अवक्तव्य, अथवा तीन प्रदेशावगाही व एक प्रदेशावगाही आनपूर्वी अनानपूर्वी पों छव्वीस भांगे द्रव्यानुपूर्वी जैसे कहना. यावत् यह नैगम व्यवझर नय के मत से भागोषदर्शनता हुई. // 61 // अहो भगवन् ! नैगम व्यवहार भनय से समवतार किसे कहते हैं ? नेगम व्यवहार नय से आनपी द्रव्य का कहां समवतार होता है? क्या आनुपूर्वी द्रव्य में, अनानुपूर्वी द्रव्य में या अवक्तव्य में होता है ? अहो शिष्य ! आनुपूर्वी द्रव्य का भानुपूर्वी द्रव्य में समवतार होता है परंतु अनानुपूर्वी र अवक्तव्य में समवतार नहीं होता है. ऐसे ही अर्थ क्षेत्रानुपूर्वी का कथन <dast For Private and Personal Use Only