________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . किं तं अणुगमे ? अणुगमे नव विहे पण्णत्ते तंजहा-(गाहा) 1 संतपय परूवणया, 2 दव्वपमाण,३ खित्त, 4 फुमणाय 5 कालोय 6 अंतरं,७ भाग, 8 भाव, 9 अप्पाबडं चेव // 1 // 29 // नेगमववहाराणं आणुपुवी दव्वाइं किं अस्थि नत्थि ? णियमा आत्थि, // नेगम ववहाराणं आणाणुपुब्बी दवाई किं अस्थि णत्थि ? णियमा अत्थि // नेगम ववहाराणं अवत्तव्यग दवाई कि अस्थि स्थि ? नियमा अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी कहते हैं ? अहो शिष्य ! सूत्र के अनकल रूप का दर्शानेवाला अथवा माननीय रूप की व्याख्या करनेवाले अनुगम के नव भेद कहे हैं. तद्यथा-१ सत्पभिरूपना द्वार-विद्यमान सत्पद की प्ररूपना करे परंतु आकाश कुमुगवत् अविद्यमान पद की प्ररूपना नहीं करे, 2 द्रव्य प्रमाण द्वार-इस में द्रव्यों के संख्या का कथन, 3 क्षेत्र द्वार-जितने क्षेत्र में रहे उस का कथन, 4 स्पर्शन द्वार में कितना क्षेत्र स्पर्शना जिस का कथन.काल द्वार में कितने काल की स्थिति है उसका कथन है, 6 अंतर द्वार में बिछडे हुआ पीछे कितने काल में मील जाय उस का कान है,७भाग द्वार में परस्पर कितना भाग है जिस का कथन है.८ भाव द्वार में कितने भाव है उस का कथन है, और 2 अल्पावहत्त्व द्वार में अल्पबहुत्व व विशेषाधिक कौन 2 है जिस का वर्णन है // 29 // प्रथम सत्पद प्ररूपना द्वार-अहो भगवन् ! नैगम व्यवहार नय के मत से अनुपूर्वी द्रव्य. अनानुपूर्वी द्रव्य व अवक्तव्य द्रव्य की अस्ति है कि नास्ति है ? अहो शिष्य ! तीनों काल में तीनों प्रकार के द्रव्य की नियमा से सदैव अस्ति है परंतु नास्ति नहीं है // 30 // For Private and Personal Use Only काशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *