________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * 60 88 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी सेतं अणाणुपुब्बी से तं उणिहिया दवाणुपुर्व सेतं जाणगवइरित्ता दव्वाणुपुवी। सेतं नो अगमओ दव्याणु पुची / सेतं दाणु पुब्धी // 56 // से कितं खेत्ताणु पुधी ? खेत्ताणुपुब्बी दुविहा पण्णत्ता तंजहः-3वणिहियाय, अणावणिहियाय // तत्यणं जा सा उवणिहिया सातत्यणं जा सा अणोबाणाहिया मा दुविहा पण्णत्ता तंजहा-जेगमववहाराणं संगहस्सय॥ 57 ॥ले किंतं गमयवहाराणं अणोवाणिहिया खेत्ताणुष्वी ? गमववहाराणं अणोचहिया खेत्ताणुगुब्बी पंचविहा पण्णत्ता तंजहा-अटुपय परूवणया, भंग समुक्त्तिणया, भंगोक्दसणया, समोयारे, अणुगमे // 58 // से किं तं गम ववहाराणं अदृश्य परूवया ? नेगम बवहाराणं यह ज्ञ शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी ई. यह नो आगम में द्रयानपूरी हुई. यह द्रव्यान. पूर्वी का कथन मा. // 26 // अहो भगवन् ! क्षेत्रानपूर्वी कि कहते हैं ? ओ शिष्य ! क्षेत्रानुपूर्वी के दो भेद कह हैं तद्यथा-निधि का और अनसनधेिका. इस में से उपनिधि वर्णन यहां नहीं करते हैं और अनुपनिधि का के दो भेद रहे हैं नै म व्यवहार से रथ और कि संग्रह नय से. || 57 // अहो भगवन ! नैगम व्यवहार नय से अनुपनिधिक क्षेत्रान पूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! इस के पांच भेद कहे हैं. तद्यथा-१ अर्थषद प्ररूपना, 2 भंग समुत्तीर्तनता, 3 भंगोपदर्शनता, 4 समस्तार और अनुगम. // 58 // अहो भगवन ! नैगम व्यवहार नय से अर्थपद प्ररूपमा किसे शक-रानाबहादुर लाला सुखदवसहायनी ज्वालाप्रसाद * अर्थ For Private and Personal Use Only