________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकत्रिवत्तम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्थ मूल संखेनेसु भागेसु होजा, नो असंखेजेसु भागेसु होज्जा, नियमा तिभागे होजा, एवं दोनिवि / / 52 // संगहस्स आणुपुब्बी दव्बाई कयराम भावे होज्जा ? नियमा साइ परिणाभिए भावे होजा, एवं दोनिवि। अप्पाबहुं नस्थि ते तं अणुगो / से तं संगहस्स अणोवणिहिया दवाणपुब्बी / से तं अणोवणिहिया दव्याणपुची ! 53 // __ से किं तं वणिहिया दवाणुपुब्बी ? उणिहिया दवाणुब्बी तिविहा पण्णत्ता तंजहा-पुन्वाणुपुवी, पच्छाणुपुब्बी, अणाणुपुव्वाय / 54 // से किं तं पुवाणुपुवी? हैं. पात्र तीसरे भाग में होवे. ऐसे ही अमानुपूर्वी व अवक्तव्य का कहना. उक्त तीनों द्रव्य से सब लोक भरा है // 52 // भाव द्वार---अहो भगवन् ! संग्रह नय के मत से आनुपूर्वी द्रव्य कौन से भावमें है ? अदो शिष्य ! नियमा एक सादि परिणामिक भाव में है. ऐसे ही अनानुपूर्वी व अवक्तव्य द्रव्य भी साहि परिणामिक भाव में होते हैं. अल्लाहुत द्वार नहीं है. यह अनुगम हुवा. यह संग्रह नय के मत से द्रव्य से अनुपनिधिका द्रव्यापूर्वी का कथन हुवा / / 53 // अब उपनिधि का द्रव्यापूर्वी कहते हैं. अहो भगान् ! उपनिधि का द्रव्यानुपू किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! उपनिधिका का नुपूर्वी के तीन भे: कहे हैं. तयथा-१ पूर्वानुमे, 2 पच्छानुपूर्वी और 3 अनानुपूर्वी // 54 // अहो 484881 अनुपनिधि का द्रव्यानुपूर्वी * For Private and Personal Use Only